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भारत कुमार – मनोज कुमार

भारतीय फिल्मी दुनिया में मनोज कुमार ने अभिनय मैं एक अनोखी अदा स्थापित की थी। लोगों ने उनकी अभिनय शैली को काफी पसंद किया उनके फिल्मों में ज्यादातर देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई रहती ।मनोज कुमार ने अधिकतर देश पर या देशभक्ति पर आधारित ही फिल्में बनाई इसीलिए उन्हें भारत कुमार भी कहा जाने लगा था।

अभिनय सम्राट दिलीप कुमार से मनोज कुमार अधिक प्रभावित थे उनकी फिल्मों को देखकर मनोज कुमार के दिल में अभिनेता बनने की चाहत पैदा हुई थी ,और इसी के चलते उन्होंने मुंबई का सफर शुरू किया । 1957 में आई फैशन फिल्म मनोज कुमार की पहली फिल्म कहलाती है। मनोज कुमार भगत सिंह से बहुत अधिक प्रेरित थे इसी के चलते उन्होंने 1965 में शहीद जैसी फिल्मों में काम किया जिन्होंने उन्हें अभिनेता के ऊंचे मुकाम पर पहुंचाया लोकप्रियता के नए झंडे इस फिल्म ने लहराए।

हमारे देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के इनके एक संदेश पर मनोज कुमार द्वारा बनाई गई उपकार फिल्म जय जवान जय किसान नारे की याद दिलाती है ।इसी नारे पर आधारित यह फिल्म काफी मशहूर हुई और लोकप्रिय भी। मनोज कुमार ने आगे चलकर बहुत सारी फिल्मों में काम किया उनमें से वह कौन थी, हिमालय की गोद में ,हरियाली और रास्ता ,पत्थर के सनम, पूरब और पश्चिम , साजन नीलकमल ,सन्यासी, बेईमान, रोटी कपड़ा और मकान, क्रांति ये प्रमुख में रही।

मनोज कुमार को कई बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया । उपकार फिल्म के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया । उपकार ,आदमी, बेईमान ,शोर ,रोटी कपड़ा और मकान ,इन फिल्मों के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया, इसके साथ साथ-साथ पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

दादामुनी – अशोक कुमार

अशोक कुमार इनका जन्म 13 अक्टूबर 1911 में भागलपुर में हुआ । असल में उनका नाम कुमुद कुमार गांगुली था । फिल्मी जगत में उन्हें एक अलग पहचान बनानी थी इसलिए उनका नाम अशोक कुमार रखा गया। बंगाली परिवार में जन्मे अशोक कुमार अपने भाई- बहनों में सबसे बड़े थे।

अशोक कुमार को अपने जीवन में कुछ बड़ा करने की चाहत थी यही चाहत उन्हें मुंबई में खींच कर ले गई । अशोक कुमार फिल्म जगत में दाखिल हुए वह बॉम्बे टॉकीज के द्वारा ,बॉम्बे टॉकीज और अशोक कुमार का रिश्ता काफी अनोखा है। अशोक कुमार अभिनेता के तौर पर बॉम्बे टॉकीज से ही नायक के रूप में फिल्म जगत में दाखिल हुए। इन्होंने जीवन नैया नाम की फिल्म से बतौर अभिनेता के फिल्मी सफर की शुरुआत की। अछूत कन्या नाम की एक बेहद कामयाब फिल्म के नायक बनने के बाद अशोक कुमार ने फिल्मी दुनिया में अपना सिक्का जमा लिया और अपनी अलग पहचान बना ली । अछूत कन्या में उनकी नायिका थी देविका रानी ।

धीरे-धीरे अशोक कुमार अपने अभिनय का जोहर दिखाते हुए अभिनय को ऊंचे मुकाम तक पहुंचाने में कामयाब हुए ।लोगों ने उनके अभिनय क्षमता को पहचान कर नायक के रूप में स्वीकार कर लिया। दादा मुनि जीने हम अशोक कुमार कहते हैं, वह फिल्मी जगत के एक नामी शख्स बन चुके थे । शुरुआत के दिनों में उन्होंने कंगन ,बंधन, झूला, सावित्री ,निर्मला, ऐसी फिल्मों में काम किया ज्यादातर जो नायिका प्रदान थी लेकिन फिर भी वह नायक के रूप में अपनी जगह स्थापित करने में कामयाब हो गए। इसी के साथ – साथ किस्मत फिल्म में उन्होंने नायक का पात्र निभाया था वह भी बेहद सफल रही और 1949 में बनने वाली महल फिल्म दे तो उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचाया जिसकी नायिका थी मधुबाला और जिस के गाने गाए थे लता मंगेशकर ने। अशोक कुमार ने बंदिनी में विमल राय के साथ काम किया और यह फिल्म भारतीय फिल्म जगत की बहुत ही खूबसूरत फिल्मों में गिनी जाती है।

अशोक कुमार की जो मशहूर फिल्में है जिनमें आरती, परिणीता ,अनोखा बंधन ,शौकीन, गुमराह ,उस्तादों के उस्ताद ,हावड़ा ब्रिज ,कानून, खट्टा -मीठा, जीवन नैया ,आशीर्वाद ,दुनिया, ममता, मिली ,बेवफा, मेहरबान हिफाजत ,दो फूल ,सत्य काम ,आदि फिल्म है । अशोक कुमार जो भी किरदार निभाते बड़ी शिद्दत के साथ निभाते पात्र के साथ सही-सही न्याय करने में कामयाब होते थे।

दादा मुनी को पहली बार फिल्म राखी के लिए 1962 में और दूसरी बार फिल्म आशीर्वाद फिल्म में किए गए अपने बेमिसाल काम के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार पुरस्कार से सम्मानित किया गया है उन्होंने आशीर्वाद फिल्म में एक बेहतरीन गीत भी गाया था रेलगाड़ी – रेलगाड़ी बच्चों के बीच में गीत बेहद की मशहूर हुआ था। हिंदी सिनेमा में अपनी उत्कृष्ट कार्य के लिए 1988 में उन्हें देश का हिंदी सिनेमा में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार दिया गया। फिल्म जगत के दाद मुनि कहे जाने वाले लोकप्रिय मशहूर और सबके चहेते अभिनेता का इंतकाल 10 दिसंबर 2001 को हुआ।

प्रदीप कुमार

बृजकिशन चांदीवाला के रूप में पैदा हुए प्रदीप कुमार एक भारतीय फिल्म अभिनेता थे, जिन्होंने मुख्य रूप से बॉलीवुड फिल्म उद्योग में काम किया था। उनका जन्म 4 जनवरी, 1925 को सियालकोट, पंजाब (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। प्रदीप कुमार 1950 और 1960 के दशक के दौरान क्लासिक हिंदी फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं।



प्रदीप कुमार ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1944 में फिल्म “चांद” से की थी। हालांकि, उन्हें हेमेन गुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म “आनंद मठ” (1952) से पहचान और सफलता मिली। फिल्म बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के एक उपन्यास पर आधारित थी और एक महत्वपूर्ण हिट बन गई। फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाले प्रदीप कुमार ने उन्हें आलोचनात्मक प्रशंसा दिलाई और उन्हें एक होनहार अभिनेता के रूप में स्थापित किया।


अपने पूरे करियर के दौरान, प्रदीप कुमार कई उल्लेखनीय फिल्मों में दिखाई दिए और अपने समय के प्रसिद्ध निर्देशकों और अभिनेताओं के साथ काम किया। उनकी कुछ लोकप्रिय फिल्मों में “नागिन” (1954), “बिन बादल बरसात” (1963), “दिल दिया दर्द लिया” (1966) और “सुंगुर्श” (1968) शामिल हैं। उन्हें अक्सर रोमांटिक लीड के रूप में लिया जाता था और वे अपने आकर्षक व्यक्तित्व और अभिव्यंजक आँखों के लिए जाने जाते थे।

प्रदीप कुमार को अभिनेत्री वैजयंतीमाला के साथ सहयोग के लिए भी जाना जाता था। वे “नागिन,” “साधना” (1958), और “गंगा जमुना” (1961) सहित कई सफल फिल्मों में एक साथ दिखाई दिए। उनकी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री को दर्शकों ने खूब सराहा।

प्रदीप कुमार अपने अभिनय कौशल के अलावा एक अच्छे गायक भी थे। उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए, अपनी फिल्मों में कुछ गीतों को अपनी आवाज दी।

प्रदीप कुमार ने 1970 के दशक के अंत तक फिल्म उद्योग में काम करना जारी रखा, जिसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे स्क्रीन पर अपनी उपस्थिति कम कर दी। उन्होंने फिल्म “लैला मजनू” (1976) के साथ फिल्म निर्माण में कदम रखा, जिसे उनके दामाद हरनाम सिंह रवैल ने निर्देशित किया था।

प्रदीप कुमार का 27 अक्टूबर, 2001 को बेंगलुरु, भारत में 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने यादगार प्रदर्शनों की विरासत को पीछे छोड़ दिया और हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

अभिनय सम्राट दिलीप कुमार

मोहम्मद यूसुफ खान जिसे पूरी दुनिया फिल्मी जगत का वह कोहिनूर समझती है जिसे हम और आप दिलीप कुमार के नाम से जानते हैं । हिंदी सिनेमा के जितने भी अदाकार हुए उनमें दिलीप कुमार सबसे ऊपर रहे ।दिलीप कुमार की अदाकारी को पूरे दुनिया वालों ने सराहा अपनाया और उन्हें मोहब्बत भी दी।

दिलीप कुमार वह पहले ऐसे अदाकार थे जिन्होंने एक्टिंग के जरिए लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई । अभिनेत्री और निर्माता देविका रानी ने पहली बार दिलीप कुमार को फिल्मी दुनिया में काम दिया । दिलीप कुमार की पहली फिल्म 1944 में आई थी जिसका नाम ज्वार भाटा था । दिलीप कुमार को ट्रेजेडी किंग के नाम से भी पहचाना जाता है शुरुआत के दौर में उन्होंने बहुत ही दुखदायक भूमिकाएं निभाई थी इसी वजह से यह नाम उनके साथ चिपक गया । शुरुआती दौर में ज्वार भाटा के बाद जुगनू ,मेला, अमर ,अंदाज, तराना, संगदिल, आरजू ,शबनम ,इंसानियत ,अंदाज़, यहूदी, आजाद, पैगाम ,दाग, कोहिनूर, नया दौर ,एक से बढ़कर एक फिल्म में उन्होंने काम किया और पूरी देशवासियों का मनोरंजन किया वह फिल्मों का दौर अलग था जहां पर उनका काम बिल्कुल कुदरती महसूस होता था ।

1960 के दशक में मुग़ल-ए-आज़म के आसिफ द्वारा बनाई गई एक ऐतिहासिक फिल्म में शहजादा सलीम की भूमिका निभाने वाले दिलीप कुमार हिंदी फिल्म जगत में अपने अनोखी अदाकारी की अमिट छाप छोड़ने में कामयाब रहे। mughal-e-azam भारतीय फिल्म इतिहास में सबसे अधिक कमाई करने वाले फिल्मों में गिनी जाती है।दिलीप कुमार का नाम शुरुआती दौर में मधुबाला के साथ जोड़ा गया था मधुबाला से वह प्यार करते थे लेकिन कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए और इन दोनों के बीच में तकरार पैदा हो गई ,बहस बढ़ती गई ,खटास बढ़ती गई और इनका रिश्ता टूट गया खत्म हो गया। आगे चलकर उन्होंने कभी एक-दूसरे साथ काम नहीं किया। उसके बाद बहुत सारी अभिनेत्रियों के साथ इनका नाम जोड़ा गया लेकिन वह सारी अफवाह साबित हुई और आखिरकार 1966 में सायरा बानो के साथ दिलीप कुमार ने शादी की, उन दोनों के बीच में लगभग 22 साल का फर्क था फिर भी यह शादी कामयाब रही ।

उम्र के दूसरे पड़ाव में भी दिलीप कुमार ने अपने अभिनय का जलवा बिखेरा और लोगों के दिलों पर राज किया उनकी क्रांति, शक्ति, विधाता ,राम और श्याम ,इज्जतदार ,दुनिया ,मशाल, सौदागर ,मजदूर, धर्माधिकारी, यह फिल्में भी कामयाब रही।

दिलीप कुमार को लगभग 8 बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया उसके साथ साथ उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण, पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। 1995 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी दिलीप कुमार को सम्मानित किया गया उसके साथ साथ पाकिस्तान में दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशाने इम्तियाज से भी 1998 में दिलीप कुमार को नवाजा गया। ऐसे हर दिल अजीज दिलीप कुमार की मृत्यु लंबी बीमारी के चलते 7 जुलाई 2021 को 98 साल की उम्र में मुंबई में हुई।